Aapki Vijay

Aapki vijay kisi ka hridaya jeetane main hai uska apmaan karne main nahin..................

Saturday, October 3, 2009

गीत- दुःख भी मानव की सम्पति है.

दुःख भी मानव की सम्पति है, फ़िर क्यों इस से घबडाता है,
दुःख आया है तो जाएगा , सुख आया है तो जाएगा सुख जाएगा,
सुख जाएगा तो दुःख देकर, और दुःख जाएगा तो सुख देकर,
सुख देकर जाने वाले से, हे मानव क्यों भय खता है,
दुःख भी मानव की, सम्पति है फिर क्यों इस से घबडाता है।।

सुख मैं सब भूले रहते है, दुःख सबकी याद दिलाता है,
सुख के आगे जो सिहर उठे उनको इतिहास न जान सका,
दुःख सहकर, ज्वाला मैं जलकर ही सोने का तेज चमकता है,
दुख की इस कड़ी कसौटी पर ये मानव परखा जाता है,
दुःख भी मानव की, सम्पति है फ़िर क्यों इस से घबडाता है,




Friday, September 4, 2009

उन बूढी आँखों ने

आख़िर उन बूढी आँखों ने डबडबाना छोड़ दिया ,
जब अपने ही कतरे ने साथ न दिया ,
कलेजे को पत्थर न जाने कब?हो जाने दिया,
जब घर को जलाने मैं ही लग गया घर का दिया॥
डबडबाती तो बे पहले थी, सीं दी थी जब जुबान,
कह कर अब बहुत हो चुका इस घर मैं, मेरा !
अपमान ! देने को फिर इम्तहान , कह दिया
बहु का सही तो है अनुमान, दरवाजे पर अच्छे लगते है दरवान,
सहित सामान , मिल गया मकाम पर, उन बूढी आँखों ने डबडबाना छोड़ दिया॥
डबडबाई तो ये तब भी थी, जब त्योहारों के मौसम,
पेट का चौका (रसोई) किसी देवस्थल की तरह पवित्र ,
रहा गया, जब बेटा का बेटा कह गया - खाना अब नही रह गया।
खिलाये थे कई त्योहार, पर नही खा पाए थे पहली बार,
शाम तक धूम मैं खरीद गए थे सारे बाज़ार , उनकी न याद आयी एक बार।
भूंखी पबित्रता से मना त्यौहार , पर उन बूढी आंखों ने डबडबाना छोड़ दिया॥



Saturday, August 29, 2009

देखने का नजरिया


हर एक चीज को, देखने का हर एक बन्दे का अपना - अपना नजरिया होताहै अगर ऐसा न होता तो रोजमर्रा के नित-नए विवाद जो समाज मैं होते रहते है । कदापि न होते।

Wednesday, August 26, 2009

मुक्तक -2

मानव हूँ , मानव सी क्या मुस्कान नहीं है काफी,
और शक्ल, रूप, बोली की क्या पहचान नहीं है काफी,
जाति पूछ कर क्यों भाई को शर्मिंदा करते हो,
क्या मेरा होना केवल इंसान नहीं है काफी॥

Tuesday, August 25, 2009

आज मन्दिर मैं मदिरा पुजारी पिए

आज मन्दिर मैं मदिरा पुजारी पिए
इसलिए बुझ गए आरती के दिए ॥
आरती से रति है किसी को नहीं।
रो रही भरती माँ इसीके लिए॥
आज मन्दिर.......................

वो सीता सावित्री वो मीरा कहाँ।
वो कथा कहानी बनी रह गयीं॥
द्रोपदी के लिए नाथ आए स्वयम ।
वो मीरा जो प्याला गरल का पिए॥
आज मन्दिर .......................

घर-घर मैं ही घर-घर के घलाक बने।
जो पालक थे वे आज बालक बने॥
धरती धसने लगी पाप के वोझ से।
दींन- दुखियों के दुःख से धधकते हिये॥
आज मन्दिर मैं मदिरा पुजारी पिए ।
इसलिए बुझ गए आरती के दिए

Monday, August 10, 2009

अपने - अपने सदा रहेंगे

अपने तो अपने होते है ........
ये पंक्तियाँ बिल्कुल सत्य हैं।
जीवन की इस अंधी दौड़ मैं आज का आदमी ये ही भूल गया है कि
दुनिया मैं वो अकेला भले ही पैदा हुआ था मगर उसका जीवन इस
संसार मैं जो उसके अपने है , उनकी ही देन है, तर्क करने वाले सदैव तर्क करते हैं कि जीवन और मृत्यु तो भगवन के हाथ मै है, परन्तु इस बात से इनकार नही

किया जा सकता है कि बिना परिवार और परिवारीजनों के जीवन कितना दुर्गम
और कभी - कभी कुत्सित या विनाशक भी हो जाता है।
इसके विपरीत सभी समाजशास्त्री और विद्वानों का मानना है किपरिवार रूपी संस्था मैं किसी भी मनुष्य का भविष्य सुरक्षित होता है। परिवार एक तरह से अपनों को बीमा की तरह सुरक्षा प्रदान करता जो दुखः - सुखः , अच्छे- बुरे, समय मैं एक सुरक्षा कवच प्रदान
करता है।





Thursday, August 6, 2009

आशावादिता- जीवन के आनंद के लिए आवश्यक -2

मनुष्य की आशा काफी हद तक उसके जीवन दर्शन पर निर्भर करती है।
कैसे?, जो मनुष्य जैसा सोचता है उसके विचार भी उसी स्तर के होते है। यदि कोई निम्न स्तर के विचारों मैं धंसा हुआ है, तो उसकी सोच भी निम्न स्तर कि ही होगी। अच्छे विचारों और अच्छी संगतिकरने पर ही कोई भी अपने जीवन और विचारों को उच्च स्तर पर ले जा सकता है। कोई जो सदविचार और उच्च विचारों वाले सज्जन लोगों के साथ मैं रहेगा तो उसका मन भी आशा का संचार होगा और वह जीवन मैं आने वाली हर सम- बिषम परिस्थिति के लिए तैयार रहेगा, जो की एक सफल मनुष्य की पहचान है। भरोसा रखो सब ठीक होगा ............




आशा से जीवन प्रत्यासा मैं वृद्धि होती है!



आशा के मन मै होने पर मनुष्य की जीवन जीने की चाहत

मै वृद्धि हो जाती है , उसे जीने का कोई न कोई कारण या रास्ता मिल ही जाता है!

जैसे रेगिस्तान मैं चल रहे प्यासे पथिक को यदि कही से जल की शीतलता लिए हुए समीर का झोंका आ जाए तो जल को प्राप्त करने के लिए उसके क़दमों की गति भी बढ़ जाती है।

ठीक ऐसे ही जीवन मैंने आशा को कभी शिथिल नहीं होने देना चाहिए।

इसे कहते है जीना .............................................